Sunday, November 8, 2015

आभाळ-निळं तळं

                                                 
     


दूर दूर, सैरभैर पसरलेलं,
नुसतं बर्फ… 
चहुकडे पर्वतरांगा, तिकडेही बर्फ…  
वर पांढऱ्या-करड्या ढगांची अलवार चादर, 
अन खाली… 
खाली… हिम… 
नितळ, निराकार, शुभ्र!

हळुवार ढग पांगतात…
कोवळं उन्ह पडतं,
त्या पिवळ्या प्रकाशात, 
केवढा सुंदर दिसतो तो बर्फ… 

त्या उन्हा पाठोपाठ, 
कोवळ्या किरणांचा हात धरून,
अलगद खाली उतरते, 
आकाशातली निळाई… 

इकडे तिकडे भटकू लागते,
निळं गाणं गाऊ लागते,
स्वतःशीच फेर धरून, 
अलगद नाचू लागते… … 

अन बेभान नाचता नाचता, 
हळुवार विरघळून जाते… 

आत्ता मघाशी इथे होता तो 
निराकार, नितळ, शुभ्र बर्फ… 
पण आता… आता उरलंय… 
एक निरागस, निळं तळं… 
आभाळ-निळं तळं!